चौंकिए नहीं, यह नजारा है शाजापुर जिले के गाँव मालवा-आगर के केवड़ास्वामी कालभैरवनाथ मंदिर का। यहाँ कालभैरव की मूर्ति को अभिमंत्रित कर लोहे की जंजीरों से बाँधा गया है। जब हमने इस बाबद यहाँ के लोगों से बातचीत की तो एक पुरानी दंतकथा पर जमी धूल साफ होने लगी।
गाँव के लोगों ने हमें बताया कि यह मंदिर झाला राजपूतों और गुजरातियों के पूजनीय केवड़ास्वामी कालभैरव महाराज का है। यहाँ के लोगों के अनुसार सन 1481 में झाला राजपूतों के राजा को एक सपना आया। सपने में उनके ईष्ट ने उन्हें आदेश दिया कि अपने वाहन लेकर निकल पड़ो।
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रास्ते में जहाँ भी गाड़ी का पहिया टूट जाए, वहीं अपना राज कायम करना। राजा ने अपने ईष्ट की बात का शब्दशः अनुसरण किया औऱ जहाँ पहिया टूटा वहीं केवड़ास्वामी कालभैरव महाराज के मंदिर की स्थापना की और आस-पास के इलाकों में अपना राज कायम किया। यहाँ से कुछ राजपूत राजस्थान चले गए तो अनेक यहीं बस गए।
इस जगह बसाहट होने के बाद लोगों ने महसूस किया कि भैरवबाबा की शैतानियाँ बढ़ती जा रही हैं। कभी वे बालरूप लेकर मिठाई चुरा लेते तो कभी किसी बच्चे की पिटाई कर देते। धीरे-धीरे बाबा को मदिरापान से भी लगाव हो गया। बाबा की बढ़ती शैतानियों को देखकर स्थानीय लोग भयभीत हो गए। उन्हें यह भी महसूस होने लगा कि कहीं बाबा गाँव छोड़कर न चले जाएँ।
लेकिन उन्हें कभी बंधन मुक्त नहीं किया जाता। यहाँ के लोगों का मानना है कि यदि भैरवबाबा को बंधन मुक्त किया गया तो वे शैतानियाँ करेंगे। लोगों को परेशान करेंगे। साथ ही स्थान छोड़कर चले जाएँगे। अभी भी कुछ खास दिनों में जब तंत्र शक्तियों का प्रभाव कुछ कम हो जाता है तब भैरवबाबा मिठाई की दुकान से मिठाइयाँ चुरा लेते हैं। कभी चुपचाप मदिरापान कर आते हैं।
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