श्री काली माता अमरावती देवस्थानम। इस पवित्र स्थान को त्रिशक्ति पीठम के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में यह मंदिर आंध्रप्रदेश
के विजयवाड़ा के गिने-चुने मंदिरों में से एक है। कृष्णावेणी नदी के तट पर
बसा यह पवित्र मंदिर बेहद अलौकिक है। त्रिशक्ति पीठम में मुख्य रूप से तीन
देवियों- श्री महाकाली, श्री महालक्ष्मी और श्री महासरस्वती की प्रतिमाएँ
स्थापित हैं, जो ‘इच्छाशक्ति’, ‘क्रियाशक्ति’ और ‘ज्ञानशक्ति’ की द्योतक हैं। इस पवित्र स्थान को पूरे देश में ‘आस्था दास प्रीतम’ के नाम से जाना जाता है।
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मंदिर की नींव कृष्णावेणी नदी के तट पर एक शक्ति उपासक गुंजा रामास्वामी ने 14 अक्टूबर, 1947 में रखी थी। फिर इस मंदिर के कपाट आश्चर्यजनक रूप से बंद कर दिए गए। 1965 में तुरग वेंकटश्वरलू नामक एक अन्य उपासक ने पंद्रह सालों बाद इस मंदिर के बंद द्वार खोले। चमत्कार तो यह था कि उनके साथ मौजूद अन्य लोगों ने मंदिर खोलने के पश्चात पाया कि मंदिर के अंदर दीप प्रज्ज्वलित था। इस घटना के पश्चात सभी ने महाकाली की महिमा मान ली।
मंदिर में वैदिक रीति से पूजा-अर्चना की जाती है। यहाँ सत्रों के अंतर्गत पंचामृत स्थापना, श्री लक्ष्मी गणेश होमम और लक्ष कुम अर्चना के पश्चात वैदिक मंत्रोच्चार द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है। यहाँ पर श्रद्धालुओं द्वारा सरानवरात्रि, दीपावली जैसे उत्सव आयोजित किए जाते हैं।
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मंदिर की नींव कृष्णावेणी नदी के तट पर एक शक्ति उपासक गुंजा रामास्वामी ने 14 अक्टूबर, 1947 में रखी थी। फिर इस मंदिर के कपाट आश्चर्यजनक रूप से बंद कर दिए गए। 1965 में तुरग वेंकटश्वरलू नामक एक अन्य उपासक ने पंद्रह सालों बाद इस मंदिर के बंद द्वार खोले। चमत्कार तो यह था कि उनके साथ मौजूद अन्य लोगों ने मंदिर खोलने के पश्चात पाया कि मंदिर के अंदर दीप प्रज्ज्वलित था। इस घटना के पश्चात सभी ने महाकाली की महिमा मान ली।
मंदिर में वैदिक रीति से पूजा-अर्चना की जाती है। यहाँ सत्रों के अंतर्गत पंचामृत स्थापना, श्री लक्ष्मी गणेश होमम और लक्ष कुम अर्चना के पश्चात वैदिक मंत्रोच्चार द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है। यहाँ पर श्रद्धालुओं द्वारा सरानवरात्रि, दीपावली जैसे उत्सव आयोजित किए जाते हैं।
यहाँ पर स्थित महाकाली की प्रतिमा के दस मुख और दस पद हैं। उनका रंग गाढ़ा नीला है। यह प्रतिमा माँ का तामसिक रूप प्रदर्शित करती है। गहनों से लदी महाकाली के आठ हाथों में शस्त्र सुसज्जित हैं। वे तलवार, चक्र, गदा, धनुष, बाण, भाला, ढाल, गुलेल, कपाल और शंख से सुसज्जित हैं। माता का यह रूप ‘योगनिद्रा’ का रूप है। भगवान ब्रह्मा माँ के इस रूप से विष्णुजी को नींद की जकड़न से छूटने की विनती कर रहे हैं, ताकि विष्णु भगवान ब्रह्माजी को मारने को लालायित मधु और कैटभ नामक राक्षसों का वध कर सकें।
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