निःसंतान दंपति इस सुख को पाने के लिए हर जतन करते हैं। कभी वह भगवान के दर पर मत्था टेकते हैं, कभी दवाखाने के चक्कर लगाते हैं तो कभी टोने-टोटके या बाबाओं के चक्कर में फँस जाते हैं।
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यह जानने के बाद हम मंगलवार की रात दस बजे जा पहुँचे माँ के दर पर। यहाँ भक्तों का हुजूम लगा हुआ था। इन लोगों से बात करने पर पता चला कि कुछ लोग यहाँ मुराद माँगने आए थे तो कुछ ऐसे थे जिनकी गोद भर चुकी थी। वे अपने नौनिहाल के साथ माँ को धन्यवाद देने आए थे।
यहाँ मन्नत माँगने का तरीका बेहद अनूठा है। सबसे पहले भक्त माँ को तीन नारियल चढ़ाकर गोद भरने की याचना करता है। मंदिर के पुजारी भक्त को गले में बंधन बाँधने के लिए मौली का धागा देते हैं। भक्त को पाँच हफ्तों तक यह धागा गले में बाँधना होता है।
यदि मुराद पूरी हो गई तो नियमानुसार पाँच नारियलों का तोरण यहाँ के पेड़ पर बाँधना होता है। संजय आंबरिया यही तोरण बाँधने मंदिर आए थे। संजय आंबरिया की तरह कई भक्त जिनकी मुराद पूरी हो गई थी, वे यहाँ तोरण बँधवा रहे थे। मंदिर में लगे पेड़ पर ऐसे सैकड़ों तोरण बँधे हुए हैं।
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