आस्था
और अंधविश्वास की इस कड़ी में हमारी मंजिल थी उज्जैन के पास का रलायता
गाँव। हमने सुना था इस गाँव में रहने वाली एक बुढ़िया कैसी भी पथरी हो,
मुँह से निकाल देती है। इस बात को खँगालने के लिए हमने अपना सफर शुरू
किया। जैसे ही हमने उज्जैन के बाहर बने कालियादेह पैलेस को पार किया, सोचा
किसी से रलायता गाँव का रास्ता पूछ लिया जाए।
जल्द ही हमें एक गड़रिया दिखा। जैसे ही हमने गडरिए से रलायता गाँव का पता पूछा। गड़रिए ने हमसे ही उल्टा सवाल किया- क्या आपको पथरी निकलवानी है। हमने कहा हाँ, कुछ ऐसा ही समझें। उसने कहा- फिर भटकते क्यों हैं, सामने की सड़क पकड़ लें। रास्ते में जो भी मिले, उससे आगे का रास्ता पूछ लेना। ठीक जगह पहुँच जाएँगे।
हमने उसकी सलाह पर अमल किया और कुछ देर में ही हम सीताबाई की ड्योढ़ी पर थे। यहाँ पहुँचने से पहले हमने अपने ड्राइवर को समझा दिया था कि उसे भी मरीज बनकर सीताबई से मिलना होगा। यहाँ पहुँचते ही हमने देखा दुर्गा मंदिर के अहाते पर एक वृद्ध स्त्री को भीड़ ने घेर रखा था। पास जाने पर पता चला, यही सीताबाई हैं, जो मुँह से पथरी निकाल लेती हैं।
जल्द ही हमें एक गड़रिया दिखा। जैसे ही हमने गडरिए से रलायता गाँव का पता पूछा। गड़रिए ने हमसे ही उल्टा सवाल किया- क्या आपको पथरी निकलवानी है। हमने कहा हाँ, कुछ ऐसा ही समझें। उसने कहा- फिर भटकते क्यों हैं, सामने की सड़क पकड़ लें। रास्ते में जो भी मिले, उससे आगे का रास्ता पूछ लेना। ठीक जगह पहुँच जाएँगे।
हमने उसकी सलाह पर अमल किया और कुछ देर में ही हम सीताबाई की ड्योढ़ी पर थे। यहाँ पहुँचने से पहले हमने अपने ड्राइवर को समझा दिया था कि उसे भी मरीज बनकर सीताबई से मिलना होगा। यहाँ पहुँचते ही हमने देखा दुर्गा मंदिर के अहाते पर एक वृद्ध स्त्री को भीड़ ने घेर रखा था। पास जाने पर पता चला, यही सीताबाई हैं, जो मुँह से पथरी निकाल लेती हैं।
यह सिलसिला लगातार काफी देर तक चलता रहा। जैसे ही उन्हें कुछ फुरसत मिली, हमने सवालों की झड़ी शुरू कर दी। सीताबाई ने बताया मैं पिछले 18 सालों से पथरी निकालने का काम कर रही हूँ। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहने लगीं मैं हवा हूँ, मेरे 52 स्थान हैं। हर जगह मैं अलग-अलग काम करती हूँ। इलाज का मूलमंत्र माँ पर विश्वास है। यदि विश्वास पक्का हो तो इलाज शर्तिया है, वरना कुछ नहीं हो सकता।यह कहते ही वे वापस अपने मरीजों के इलाज में लग गईं।
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