शराब और सिगरेट के साथ पशुओं को भी जीवा मामा को भेंट किया जाता है। यह बात जितनी आश्चर्यजनक लगती है उससे भी ज्यादा दिलचस्प इसका इतिहास है।
गाँव में लुटेरों के आतंक को देखकर उसने अपना साहस दिखलाया और लुटेरों से जा भिड़ा। जब गाँववालों ने अकेले युवक को लड़ते देखा तो उनमें भी हिम्मत आई और उन्होंने लुटेरों का डटकर मुकाबला किया। सभी गाँववालों को अपने सामने देख सभी लुटेरे भाग निकले, लेकिन बुरी तरह घायल जीवा गाँव को बचाने में शहीद हो गया।
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कहते हैं कि जीवा मामा शराब, सिगरेट और मांस के शौकीन थे, इसलिए अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर यहाँ लोग शराब, सिगरेट और पशु को प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से मंदिर परिसर में बलि देने पर प्रतिबंध लगाया गया है, इसलिए आजकल पशुओं के कुछ बालों को काटकर यहाँ रख दिया जाता है।
किसी के साहस और बलिदान को सदैव याद रखने के लिए स्मारक बनाना निश्चित ही एक अच्छा कार्य है परंतु उस पर इस प्रकार से आडंबर का जामा पहनाना क्या सही है? किसी भी देवता को प्रसाद के रूप में मांस, मदिरा और सिगरेट चढ़ाए जाने को आप कहाँ तक उचित मानते हैं। क्या आज के इस वैज्ञानिक समाज में इस तरह की किसी भी परंपरा को स्थान देना चाहिए? आप इस बारे में क्या सोचते हैं... यह आस्था है या अंधविश्वास? हमें जरूर बताएँ...
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