Tuesday, December 23, 2014

तुलजापुर की तुलजा भवानी

महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित है तुलजापुर। एक ऐसा स्थान जहाँ छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी श्रीतुलजा भवानी स्थापित हैं, जो आज भी महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में प्रचलित हैं।
तुलजा भवानी महाराष्ट्र के प्रमुख साढ़े तीन शक्तिपीठों में से एक है तथा भारत के प्रमुख पचास शक्तिपीठों में से भी एक मानी जाती है। मान्यता है कि शिवाजी को खुद देवी माँ ने तलवार प्रदान की थी। अभी यह तलवार लंदन के संग्रहालय में रखी हुई है।
यह मंदिर महाराष्ट्र के प्राचीन दंडकारण्य वनक्षेत्र में स्थित यमुनांचल पर्वत पर स्थित है। ऐसी जनश्रुति है कि इसमें स्थित तुलजा भवानी माता की मूर्ति स्वयंभू है। इस मूर्ति की एक और खास बात यह है कि यह मंदिर में स्थायी रूप से स्थापित न होकर ‘चलायमान’ है। साल में तीन बार इस प्रतिमा के साथ प्रभु महादेव, श्रीयंत्र तथा खंडरदेव की भी प्रदक्षिणापथ पर परिक्रमा करवाई जाती है।
तुलजा भवानी का मंदिर : इस मंदिर का स्थापत्य मूल रूप से हेमदपंथी शैली से प्रभावित है। इसमें प्रवेश करते ही दो विशालकाय महाद्वार नजर आते हैं। इनके बाद सबसे पहले कलोल तीर्थ स्थित है, जिसमें 108 तीर्थों के पवित्र जल का सम्मिश्रण है। इसमें उतरने के पश्चात थोड़ी ही दूरी पर गोमुख तीर्थ स्थित है, जहाँ जल तीव्र प्रवाह के साथ बहता है। तत्पश्चात सिद्धिविनायक भगवान का मंदिर स्थापित है
तत्पश्चात एक सुसज्जित द्वार में प्रवेश करने के पश्चात मुख्य कक्ष (गर्भ गृह) में माता की स्वयंभू प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह के पास ही एक चाँदी का पलंग स्थित है, जो माता की निद्रा के लिए है। इस पलंग के उलटी तरफ शिवलिंग स्थापित है, जिसे दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि माँ भवानी व शिव शंकर आमने-सामने बैठे हैं।
यहाँ पर स्थित चाँदी के छल्ले वाले स्तंभों के विषय में माना जाता है कि यदि आपके शरीर के किसी भी भाग में दर्द है, तो सात दिन लगातार इस छल्ले को छूने से वह दर्द समाप्त हो जाता है।
इस मंदिर से जुड़ी एक जनश्रुति यह भी है कि यहाँ पर एक ऐसा चमत्कारिक पत्थर विद्यमान है, जिसके विषय में यह माना जाता है कि यह आपके सभी प्रश्नों का उत्तर सांकेतिक रूप में ‘हा’ या ‘नही’ में देता है। यदि आपके प्रश्न का उत्तर ‘हा’ है तो यह अपने आप दाहिनी ओर मुड़ जाता है और अगर ‘नही’ है तो यह बायीं दिशा में मुड़ जाता है।
माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी किसी भी युद्ध से पहले चिंतामणि नामक इस पत्थर के पास अपने प्रश्नों के समाधान के लिए आते थे।

No comments:

Post a Comment